Wednesday, April 25, 2012

क्या कहू !! अपनी पहचान की अनवरत तलाश जारी है ! बचपन से पढने और लिखने का शौक रहा, पढ़ने का सिलसिला तो फिर भी जारी है, पर लिखने के मामले में कुछ पूर्वाग्रह से ग्रस्त रहा ! बनना कुछ और चाहता था पर बन कुछ और गया, इसीलिए लेखन में कभी हाथ नहीं आजमाया ! 

इन्टरनेट ने हम जैसे लोगो को भी अपनी भाव अभिव्यक्ति और अंतर्मन कि बातो को आप जैसे बुद्धिजीवी लोगो के सामने रखने का अवसर दिया है, तो सोचा कि  चलो इसी बहाने अपने पहचान को पुनर्परिभाषित किया जाये और अपने दबी इछाओ को और दमित न किया जाये, सो जनाब शुरू हो गए !!!!

बस आप सभी का आशीर्वाद और प्रोत्साहन चाहिए !!

शुभेच्छु 

सूर्या

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